Tuesday 19 May 2015

PRANIC HEALING FOR ANGER ...,

क्रोधा्द्भावति सम्मोह: सम्मोहात्स्म्रुतिविभ्र्म: । स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ।। श्रीमद, भागवत् गीता अध्याय -2 श्लोक सं -63 , अर्थात् क्रोध से अत्यंत मूढ़ भाव उत्पन्न हो जाता है, मूढ़ भाव से स्मृति में भ्रम हो जाता है, स्मृति भ्रम हो जाने से बुद्धि अर्थात् ज्ञानशक्ति का नाश हो जाता है और बुद्धि का नाश हो जाने से यह पुरुष अपनी स्थिति से गिर जाता है । लगता है डॉ वंदना जी आप आधुनिक तरीके से हम लोगों को गीता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे रही है ।आपने बड़े ही सुन्दर ढंग से गीता के इस सारांश को नवीनता का रूप दिया है ।साधुबाद आपको ,सद्,मार्ग की ओर संकेत देने के लिए ।.....by  Prof. surendra nath panch ji