Wednesday 23 December 2015

@ ध्वनि और सात चक्र - 1 =================== ऊर्जा का ध्वनि रूप कभी नष्ट नहीं होता । आज भी विज्ञान कृष्ण की गीता को आकाश से मूल रूप में प्राप्त करना चाहता है । ध्वनि की तरंगे जल तरंगों की तरह वर्तुल (गोलाकार) रूप में आगे बढ़ती हैं । सूर्य की किरणें सीधी रेखा में चलती हैं, इनका मार्ग कोई भी अपारदर्शी माध्यम अवरुद्ध कर सकता है । जल तरंगें जल तक ही सिमित रहती हैं । लेकिन ध्वनि तरंगों को कोई माध्यम रोक नहीं पाता है । गर्भस्त शिशु भी ध्वनि स्पंदनों ग्रहण कर अभिमन्यु बन जाता है । प्रकृति ने शरीर को सात धातुओं में, सात चक्रों में , सप्तांग गुहाओं में श्रेणीबद्ध किया है ।ध्वनि को भी सात सुरों से अलंकृत किया है । सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड जो की ध्वनि अर्थात नाद पर ही आधारित है, सात ही लोकों में बटा हुआ है ।यथा: भु - भुव: - स्व: - मह: - जन: - तप: - सत्यम् ।शरीर के सात चक्रों की तुलना भी इन सात लोकों से की गयी है । जैसे सृष्टि और प्रकृति में संतुलन जरुरी है, उसी प्रकार शरीर तथा चक्रों में संतुलन आवश्यक है ।प्रत्येक चक्र पर वर्णमाला के वर्ण भी अभिव्यक्त होते हैं। इन वर्णों का , सात सुरों के स्पंदनों का चक्रों से विशिष्ठ सम्बन्ध होता है । दूसरी ओर प्रत्येक चक्र से शरीर के कुछ अवयव जुड़े हुए हैं । चक्र शरीर के विशेष शक्ति केंद्र हैं , अत: इनसे ही , आश्रित अवयवों की क्रियाओं का नियंत्रण होता है । अवयवों के रोगग्रस्त होने की दशा में चक्रों का संतुलन भी बिगड़ जाता है । चक्रों का सीधा सम्बन्ध हमारे आभामंडल से होता है । इसी आभामंडल से हमारा मन निर्मित होता है । आभामंडल अपने चारों ओर के वायुमंडल से ऊर्जाएं ग्रहण करता है । यहाँ से सारी ऊर्जाएं चक्रों से गुजरती हुई विभिन्न अंगों , स्नायु कोशिकाओं में वितरित होती है । मूलाधार और सहस्त्रार को छोड़कर सभी चक्र युगल रूप में होते हैं । एक भाग आगे की ओर तथा दूसरा भाग पीठ की ओर । साधारण अवस्था में सभी चक्र घड़ी की दिशा में घूमते हैं । हर चक्र की अपनी गति होती है । इसमें होने वाले स्पंदनों की आवृति ( frequency ) के अनुरूप ही चक्र का रंग होता है । चक्र का आगे वाला भाग गुण - धर्म से जुड़ा है । पृष्ठ भाग गुणों की मात्रा , स्तर और प्रचुरता से जुड़ा होता है । युगल का संगम रीढ़ केंद्र होता है । जहाँ इडा - पिंगला भी मिलती हैं । यही केंद्र अंत:स्रावी ग्रंथि (endocrine gland) से जुड़ा होता है । अनंत आकाश से तथा सूर्य से आने वाली ऊर्जाएं हमारे आभामंडल और चक्रों के समूह के माध्यम से हमारे स्थूल शरीर में प्रवेश करती है । अंत:स्रावी ग्रंथियों के नाम एवम् स्थान:- ======================== चक्र ग्रंथि स्थान --------- ----------- -------------- 7 सहस्त्रार पीनियल कपाल 6 आज्ञा पिच्युटरी (पीयुशिका) भ्रूमध्य 5 विशुद्धि थायराईड (गलग्रंथी) कंठ 4 अनाहत थायमस (बाल्य ग्रंथि) ह्रदय 3 मणिपूर पेनक्रियज (अग्नाशय) नाभि 2 स्वाधिष्ठान एड्रिनल ( जनन ग्रंथि) पेडू 1 मूलाधार गोनाड (अधिब्रक्क) रीढ़ का अंतिम छोर कार्य क्षेत्र ======= सहस्रार - ऊपरी मस्तिष्क, दाहिनी आँख, स्नायु तंत्र, शरीर का ढांचा, आत्मिक धरातल, सूक्ष्म ऊर्जा सइ सम्बन्ध, पूर्व जन्म स्मृति आदि । भ्रूमध्य - ग्रंथियों की कार्य प्रणाली, प्रतिरोध क्षमता, चेहरा तथा इन्द्रियों के कार्य, अंत:चक्षु , चुम्बकीय क्षेत्र, प्रज्ञा आदि । विशुद्धि - स्वर यंत्र , श्वसन तंत्र , अंत:श्रवण, टेलीपेथी, अंतर्मन आदि । अनाहत - रोग निरोधक क्षमता, ह्रदय, रक्त प्रवाह , दया - करुणा का केंद्र, अन्य प्राणीयों के प्रति सम्मान भाव आदि । मणिपुर - पाचन तंत्र, यकृत, तिल्ली , नाड़ी तंत्र , आंतें , बायाँ मस्तिस्क, बौद्धिक विकास आदि । स्वाधिष्ठान - प्रजनन तंत्र, गुर्दे , मूत्र , मल, विष विसर्ज्ञन, भावनात्मक धरातल, सूक्ष्म स्तर आदि । मूलाधार - विसर्जन तंत्र , रीढ़ , पैर ,प्रजनन अंग, जीवन ऊर्जा का मूल केंद्र, भय मुक्ति, शक्ति केंद्र । क्रमशः


Thursday 17 December 2015

Learn forgiveness...9872880634

Forgiveness doesn't mean not taking action to rectify a situation, or not speaking your mind to someone. It does mean, however, that you will do so from a calmer and more thoughtful space, probably reaping better results. Most importantly, you will be happier.

Sunday 13 December 2015

Pranic healing for Manipur Chakra...your seat of Anger....Chandigarh Pranic Clinic...

चिंता ....
आप अपने जीवन के प्रवाह पर भरोसा नहीं कर रहे हैं । आप खुद को प्यार और खुद का अनुमोदन और जीवन की प्रक्रिया में विश्वास करने के लिए प्रयास करें। आप को सुरक्षित महसूस करें।

Saturday 12 December 2015

Aura ...Chandigarh

Read somewhere , like to share....
ॠषि-मुनियों ने मनुष्‍य के शरीर में सात शक्ति-केंद्रों की उपस्थिति बताई है। इन शक्ति-केंद्रों से इन्‍द्रधनुषी सात रंग निकलते हैं। जो मनुष्‍य के शरीर पर एक दिव्‍य आभा-मण्‍डल का निर्माण करते हैं। इस आभा-मण्‍डल को देख मनुष्‍य की भौतिक व मानसिक स्थिति का सही ज्ञान प्राप्‍त कियका जा सकता है। आभा-मण्‍डल के रंगों को देख मानव-शरीर में निकट भविष्‍य में होने वाले विभिन्‍न रोगों का काफी समय पहले पता लगाया जा सकता है। किरलियन फोटोग्राफी द्वारा आज आभा-मण्‍डल का चित्र लेना सम्‍भव हो गया है। इस तकनीक द्वारा रोग के साथ-साथ मनुष्‍य की भौतिक बुराइयों का भी उपचार संभव है।